इसमें लोगो का कोई गुनाह नही है लोगो ने उनके लिए ऐसा बुरा चुना नही है
वो तो हर रोज करते है पुकार उस दुनिया बनाने वाले से मगर अभी तक उस ऊपर वाले ने कुछ सुना नही है
उसने अभी तक उन मासूम बच्चो की चीखें नही सुनी जो देते है दम तोड़
कही रोगो के चलते
एक बुरी कहानी के चलते
कही बाप तोड़ देते है दम जिम्मेदारियो के चलते
सर पर बोझा है बहुत,
और लोग कहते है इंसान रोता है बहुत
अरे रोये नही तो करे क्या ?
उसकी साँसो से सब भरते है अपना पेट
और वो अपना पेट भरने को अपना ही पेट काट कर मरे क्या ?
नीच लोगो से डरे क्या ?
उनकी गुलामी करे क्या ?
कभी कभी करता भी है कभी कभी डरता भी है
कही सपने उसके भी
और उन्ही सपनो के लिए कही बार बुरा वो बनता भी है .
इस चीज़ का हिस्सा सिर्फ एक इंसान नही
इस चीज़ का हिस्सा जनता भी है
बाहरी दर्द निकालता है कोन
मगर अन्दर वाला दर्द निकालती है रूह
निकालती है ज़िन्दगी
और उस ज़िन्दगी से कही अरमान
और उन अरमानो को मिटाते जाता है
कोई नही है एक बे सहारे इंसान के साथ
फिर वो इंसान खुदको ये सिखाते जाता है
ठोकरें खाते जाता है
और ये ज़िन्दगी खाती है उसको
वो तो बस जीना चाहता है
दो पल,
कहना चाहता है
दो शब्द,
एक सफर जो पूरा नही होता
और एक सफर पर ही खड़ा है
अपना सफर शुरु करने के लिए
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